वेद-रहस्य | Ved - Rahasya

By: श्री नारायण स्वामी - Shree Narayan Swami
वेद-रहस्य | Ved - Rahasya  by


दो शब्द :

इस पाठ में वेदों के बारे में उत्पन्न हुए भ्रमों और उनके सुधार की आवश्यकता पर चर्चा की गई है। लेखक ने दो मुख्य कारणों का उल्लेख किया है, जिनसे लोगों में वेदों के प्रति संशय उत्पन्न हुए हैं। पहला, विकासवाद का सिद्धांत, जो यह मानता है कि ज्ञान की प्राप्ति के लिए किसी बाहरी शक्ति की आवश्यकता नहीं है। दूसरा, पश्चिमी विद्वानों के लेख, जो यह दावा करते हैं कि वैदिक भाषा किसी आदिम भाषा से विकसित हुई है और वैदिक सभ्यता आदिम सभ्यता नहीं है। लेखक ने इस पुस्तक के माध्यम से इन भ्रमों को दूर करने और वेदों की आंतरिक शिक्षाओं का प्रसार करने का उद्देश्य रखा है। वेदों के मंत्रों का संग्रह पुस्तक के अंत में किया गया है, जिससे पाठक वेदों की जानकारी प्राप्त कर सकें और अपने दैनिक स्वाध्याय में उनका उपयोग कर सकें। पुस्तक में पहले अध्याय में मनुष्य के स्वाभाविक ज्ञान और नेमित्तिक ज्ञान का अंतर बताया गया है। मनुष्य की विशेषता उसके नेमित्तिक ज्ञान की प्राप्ति में है, जो उसे शिक्षा के माध्यम से मिलता है। अमेथुनि सृष्टि के सिद्धांत के अंतर्गत यह बताया गया है कि प्राचीन काल में बिना माता-पिता के संयोग के जीवों की उत्पत्ति कैसे हुई। अंत में, लेखक ने विभिन्न प्रकार की सृष्टियों का विवरण दिया है, जिनमें योनिज और अयोनिज प्राणियों की उत्पत्ति के विभिन्न तरीके शामिल हैं। यह पाठ वेदों की गहराई और उनके ज्ञान को समझने का प्रयास करता है, ताकि लोग वेदों के प्रति जागरूक हों और उनसे लाभ उठा सकें।


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