प्राचीन भारत का धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक जीवन | Prachin Bharat Ka Dharmik, Samajik Evam Aarthik Jivan

By: सत्यकेतु विद्यालंकार - SatyaKetu Vidyalankar
प्राचीन भारत का धार्मिक,  सामाजिक   एवं आर्थिक जीवन | Prachin Bharat Ka Dharmik, Samajik Evam Aarthik Jivan by


दो शब्द :

लेखक सत्यकेतु विद्यालंकार ने अपने ग्रंथ में भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण पहलुओं का सरलता से वर्णन करने का प्रयास किया है। उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि किसी भी देश की संस्कृति धर्म, दार्शनिक विचार, सामाजिक संगठन, साहित्य, संगीत और कला के माध्यम से प्रकट होती है। भारतीय संस्कृति का अध्ययन करते समय यह आवश्यक है कि इसे राजनीतिक घटनाओं से अलग रखा जाए ताकि सांस्कृतिक विकास पर सही प्रकाश डाला जा सके। वर्तमान में, प्राचीन भारत की संस्कृति अन्य प्राचीन सभ्यताओं की तुलना में जीवित और प्रभावशाली है। भारतीय धर्म, विशेष रूप से वैदिक धर्म, ने हजारों वर्षों बाद भी अपनी मूल पहचान को बनाए रखा है। लेखक ने बताया कि भारत में अनेक धार्मिक विचार और धारणाएँ विकसित हुई हैं, लेकिन इनका संबंध वैदिक धर्म से हमेशा बना रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि विभिन्न धार्मिक विचारधाराओं, जैसे बौद्ध और जैन, ने वैदिक धर्म को प्रभावित किया, जबकि वैदिक धर्म ने भी अन्य धाराओं को अपने में समाहित किया। लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि भारत में सामाजिक संगठन और आर्थिक जीवन में भी भिन्नताएँ रहीं हैं। वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत समाज को चार वर्गों में विभाजित किया गया, लेकिन भारत में अनेक जातियाँ ऐसी हैं जो इस वर्गीकरण के अंतर्गत नहीं आतीं। उन्होंने जाति-व्यवस्था के विकास को विभिन्न ऐतिहासिक परिस्थितियों का परिणाम बताया है। प्राचीन भारत में व्यापार और उद्योग के लिए संगठनों का भी महत्वपूर्ण स्थान था। शिल्पियों और व्यापारियों के संगठन स्वतंत्र रूप से कार्य करते थे और उनके अपने नियम और परंपराएँ होती थीं। इन संगठनों का सार्वजनिक जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान था। अंत में, लेखक ने यह उल्लेख किया कि भारत की प्राचीन संस्कृति और धार्मिक धारा ने विभिन्न जातियों और संस्कृतियों के प्रभाव को समाहित किया है, जिससे भारतीय संस्कृति समृद्ध हुई है और आज भी जीवित है। इस ग्रंथ के माध्यम से उन्होंने प्राचीन भारत के सामाजिक और आर्थिक जीवन का विश्लेषण करने का प्रयास किया है।


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