राज योग विद्या | Raaj Yog Vidhya
- श्रेणी: धार्मिक / Religious मानसिक शक्ति/ Mansik Shakti योग / Yoga
- लेखक: पं-सत्येश्वरानंद-शर्मा - P. Satyeshwaranand Sharma
- पृष्ठ : 184
- साइज: 4 MB
- वर्ष: 1929
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दो शब्द :
यह पाठ एक पुस्तक का परिचय और सारांश प्रस्तुत करता है जो योग और ध्यान के विषय में है। पुस्तक का मुख्य उद्देश्य पाठकों को योगदर्शन और उसके विज्ञान को समझाना है। लेखक ने विभिन्न धर्मों और विचारधाराओं की आलोचना की है और उन्हें भौतिक विज्ञान के दृष्टिकोण से समझाने का प्रयास किया है। पुस्तक में योग के विभिन्न पहलुओं, जैसे हठ योग, ध्यान, प्राण शक्ति का संयम, और आत्मा का अनुभव करने के तरीके पर चर्चा की गई है। यह बताया गया है कि योग साधना के माध्यम से व्यक्ति अपने अंदर की शक्तियों को पहचान सकता है और अपने अनुभवों को स्वयं के द्वारा सत्यापित कर सकता है। लेखक ने यह भी उल्लेख किया है कि किसी भी आध्यात्मिक ज्ञान को केवल अनुभव द्वारा ही समझा जा सकता है, न कि केवल सिद्धांतों के द्वारा। पुस्तक में यह भी बताया गया है कि मन की शक्ति और एकाग्रता का कैसे उपयोग किया जाए ताकि व्यक्ति अपनी आंतरिक स्थिति को समझ सके। योग साधना के माध्यम से आत्मा की पहचान और उसके रहस्यों को जानने की प्रक्रिया का विस्तार से वर्णन किया गया है। अंत में, यह पाठ यह दर्शाता है कि योग केवल एक शारीरिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह मन और आत्मा के गहरे रहस्यों की खोज का एक साधन है, जो व्यक्ति को उसके पूर्णता के अनुभव तक पहुँचने में मदद करता है।
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