आत्म - विद्या (प्रथम भाग ) | Aatm - Vidhya (part 1)

By: उदयलाल काशलीवाल - udaylal kashliwal


दो शब्द :

इस पाठ में महात्मा गोरीशंकर की जीवन यात्रा और उनके वेदांत दर्शन की गहराई का विवरण दिया गया है। पाठ में वर्णाश्रम धर्म, वेदांत शास्त्र, आत्म-ज्ञान, और मोक्ष की चर्चा की गई है। महात्मा गोरीशंकर ने अपने वानप्रस्थाश्रम को त्यागकर संन्यास ग्रहण किया, जिसमें उन्होंने संसार की माया को छोड़कर निष्काम वृत्ति अपनाई। उनका मानना था कि धर्म का मुख्य उद्देश्य परमेश्वर की प्राप्ति और आत्म-ज्ञान है, और वेदांत शास्त्र में निहित तत्त्वों की श्रेष्ठता को स्वीकार करते थे। वे वेदांत के सिद्धांतों को गहराई से समझते थे और उनका अनुभव करते थे। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि संसार की भौतिक वस्तुएं मिथ्या हैं और असली सत्य केवल परमात्मा है। उन्होंने अपने जीवन में आत्म-ज्ञान की प्राप्ति की और वे अपने अनुभवों के माध्यम से यह सिद्ध करते थे कि आत्मा और परमात्मा का संबंध एकत्व का है। महात्मा गोरीशंकर ने अपने विचारों को एक पत्र के माध्यम से व्यक्त किया, जिसमें उन्होंने संन्यास के महत्व और आत्मा की शुद्धता का उल्लेख किया। पाठ के अंत में, वेदांत शास्त्र के पुनरुत्थान और इसके महत्व पर चर्चा की गई है। आधुनिक विद्वानों के विचारों का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि वे प्राचीन ज्ञान को महत्व देने के बजाय आधुनिकता की ओर झुकाव रखते हैं। इस संदर्भ में, पाठ यह स्पष्ट करता है कि वेदांत और तत्त्वज्ञान की गहराई को समझना और उसे अपनाना ही मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य है।


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