आधुनिक हिंदी काव्य में परंपरा तथा प्रयोग | Aadhunik Hindi Kavya Mai Parampara Tatha Prayog

By: डॉ-गोपाल-दत्त-सारस्वत - Dr. Gopal Datt Saraswat


दो शब्द :

इस पाठ में आधुनिक हिंदी कविता में परंपरा और प्रयोग का विश्लेषण किया गया है। लेखक ने बताया है कि 'प्रयोग' और 'परंपरा' एक दूसरे के पूरक हैं। प्रयोग को एक नई अभिव्यक्ति के रूप में देखा गया है, जो परंपरा के अंतर्गत आता है। परंपरा को उस स्थायी धारा के रूप में व्याख्यायित किया गया है, जो समय के साथ चलती है, जबकि प्रयोग नवाचार के रूप में उभरता है। लेखक ने कहा है कि एक प्रयोग केवल नवीनता के लिए नहीं होता, बल्कि वह परंपरा में नए रंग भरने का कार्य करता है। साहित्य में प्रयोग का अर्थ है नयी दृष्टि और अभिव्यक्ति का उद्घाटन करना। परंपरा और प्रयोग के बीच एक संतुलन बना रहना आवश्यक है, क्योंकि परंपरा बिना प्रयोग के स्थिर हो जाती है और प्रयोग बिना परंपरा के दिशाहीन हो सकता है। डा. गोपाल दत्त ने यह विचार प्रस्तुत किया है कि साहित्य में प्रयोग का उद्देश्य परिचित वस्तुओं में नयी संभावनाओं का उद्घाटन करना है, जिससे काव्य में नया रूप और अर्थ उत्पन्न होता है। इस प्रकार, परंपरा और प्रयोग के बीच का संबंध रचनात्मकता को बढ़ावा देता है और साहित्य को गतिशील बनाए रखता है। पाठ के अंत में यह कहा गया है कि परंपरा और प्रयोग के बीच सामंजस्य से ही साहित्य का विकास संभव है। प्रयोग केवल वर्तमान की आवश्यकता नहीं है, बल्कि यह भविष्य की संभावनाओं के द्वार खोलता है। इस प्रकार, यह अध्ययन हिंदी साहित्य के विकास में परंपरा और प्रयोग की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करता है।


Please share your views, complaints, requests, or suggestions in the comment box below.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *