वैदिक उपासना | Vaidik Upasana

- श्रेणी: वैदिक काल / vedik period साहित्य / Literature
- लेखक: कर्म सिंह आर्य - Karm Singh Arya
- पृष्ठ : 85
- साइज: 4 MB
- वर्ष: 2000
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दो शब्द :
इस पाठ में वैदिक उपासना के महत्व और इसकी जड़ों का वर्णन किया गया है। लेखक डॉ. कर्म सिंह आर्य ने महर्षि दयानंद सरस्वती के योगदान को विशेष रूप से उजागर किया है, जिन्होंने वेदों के ज्ञान को पुनर्जीवित किया और एकेश्वरवाद का समर्थन किया। पाठ में बताया गया है कि वेदों में जीवन के चार प्रमुख लक्ष्यों - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष - का उल्लेख है, और ये लक्ष्यों के माध्यम से मानव जीवन की संपूर्णता का आधार बनाते हैं। महाभारत के युद्ध के बाद वैदिक संस्कृति का पतन हुआ, जिससे भारत पराधीनता की ओर बढ़ा। 19वीं सदी में महर्षि दयानंद ने वेदों के ज्ञान का प्रचार किया और मानवता को सच्चे ईश्वर की उपासना का मार्ग दिखाया। उन्होंने योग के माध्यम से मोक्ष प्राप्ति के सिद्धांत को भी प्रस्तुत किया। लेख में यह भी दर्शाया गया है कि कैसे मानव जीवन का उद्देश्य ईश्वर की प्राप्ति है और भोग-विलास में नहीं, बल्कि त्याग में है। महर्षि दयानंद ने योग और वेदों के आधार पर उपासना की विधियों का विकास किया और यह बताया कि कैसे साधक योगाभ्यास के द्वारा अपने आत्मिक लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है। अंत में, पाठ में वैदिक साहित्य में ईश्वर, जीव और प्रकृति के स्वरूप का विवेचन किया गया है, जिसमें योग दर्शन की महत्वपूर्ण बातें भी शामिल हैं। महर्षि दयानंद के विचारों को विभिन्न संदर्भों में प्रस्तुत किया गया है, ताकि पाठक योग और उपासना की प्राचीन विधियों को समझ सकें। यह पाठ वैदिक उपासना की वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समृद्धि को दर्शाता है।
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