परिव्राजक | Parivrajak

- श्रेणी: कहानियाँ / Stories जीवनी / Biography साहित्य / Literature
- लेखक: स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand
- पृष्ठ : 150
- साइज: 2 MB
- वर्ष: 1950
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दो शब्द :
इस पाठ में स्वामी विवेकानंद के "परिव्राजक" नामक वृत्तांत का सार प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उन्होंने अपने भ्रमण के अनुभवों को एक डायरी के रूप में लिखा है। स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति और सभ्यता के पतन के कारणों का विश्लेषण किया है और भारत को पुनः अपने गौरव को प्राप्त करने के मार्ग दिखाए हैं। विवेकानंद के विचारों में यह स्पष्ट है कि भारत को अपने प्राचीन ज्ञान और संस्कृति पर गर्व करना चाहिए और उसे फिर से उच्च शिखर पर पहुंचने के लिए प्रयास करना चाहिए। उनकी यात्रा के दौरान उन्होंने विभिन्न देशों में अनुभव किए गए सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं का वर्णन किया है, जो भारतीय समाज के लिए प्रेरणादायक हैं। पुस्तक में विवेकानंद के विचारों को संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उनके द्वारा देखे गए प्राकृतिक सौंदर्य, विभिन्न संस्कृतियों के अनुभव, और उनकी भारतीयता के प्रति गहरी संवेदनशीलता का बखान किया गया है। उन्होंने यह भी बताया है कि कैसे विभिन्न स्थानों पर लोग अपनी दिनचर्या, रीति-रिवाज और आचार-व्यवहार में भिन्नता रखते हैं, लेकिन मानवता की मूल भावनाएं समान होती हैं। इस प्रकार, यह पाठ स्वामी विवेकानंद की दृष्टि, उनके अनुभव और मानवता के प्रति उनकी गहरी समझ को दर्शाता है, जो आज भी प्रासंगिक हैं।
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