श्री दसम ग्रन्थ साहेब (भाग -४) | Shree Dasam Granth Saheb (part4)

- श्रेणी: ग्रन्थ / granth साहित्य / Literature
- लेखक: जोध सिंह - Jodh Singh
- पृष्ठ : 732
- साइज: 40 MB
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दो शब्द :
इस पाठ में भारतीय लिपियों, विशेष रूप से नागरी लिपि की वैज्ञानिकता और उसकी विशेषताओं पर चर्चा की गई है। यह कहा गया है कि सभी भारतीय लिपियाँ अपनी जगह पर महत्वपूर्ण हैं, लेकिन नागरी लिपि की एक विशेषता यह है कि यह पूरे देश में प्रचलित है। लेखक का तर्क है कि ज्ञान के प्रसार के लिए नागरी लिपि का उपयोग करना आवश्यक है, क्योंकि यह अन्य भाषाओं के साहित्य को भी समाहित कर सकती है। लेखक ने यह भी बताया है कि नागरी लिपि में कुछ विशेष व्यंजन और स्वर नहीं हैं, लेकिन यह अन्य भाषाओं के कुछ विशिष्ट ध्वनियों को अपने में समाहित कर सकती है। नागरी लिपि को विकसित करने के लिए अनुसंधान और परिमार्जन की आवश्यकता है, लेकिन इसे व्यवहार में लाने की आवश्यकता भी है ताकि लोग एक-दूसरे की ज्ञानराशि को समझ सकें। इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि अन्य लिपियों को भी संरक्षित रखना आवश्यक है और सभी लिपियों के बीच समता और सहयोग होना चाहिए। लेखक का मानना है कि ज्ञान का प्रसार और संपर्क लिपि के माध्यम से ही संभव है, और इस संदर्भ में नागरी लिपि एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। अंत में, यह विचार व्यक्त किया गया है कि नागरी लिपि मानवता की साझा संपत्ति है और इसका गर्व किसी एक समुदाय को नहीं होना चाहिए।
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