बलि का बकरा | Bali Ka Bakra

By: - मन्मथनाथ गुप्त - Manmathnath Gupt
बलि का बकरा | Bali Ka Bakra by


दो शब्द :

इस पाठ में हज़ारीलाल, उसके भाई सोनेलाल और उनकी माता होमवती के परिवार के संघर्षों और जीवन की कठिनाइयों का वर्णन किया गया है। हज़ारीलाल की माता का पहले ही निधन हो चुका था और पिता की मृत्यु के बाद, भाईयों की जिम्मेदारियाँ बढ़ गईं। सोनेलाल ने अपने पिता की इच्छाओं का सम्मान करते हुए पढ़ाई जारी रखी, जबकि हज़ारीलाल पढ़ाई में कमजोर था और काम सीखने में रुचि नहीं दिखाता था। परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण होमवती अपने पति की कमाई पर निर्भर नहीं रहना चाहती थी। वह चाहती थी कि हज़ारीलाल किसी कार्य में लगे, लेकिन सोनेलाल उसे पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रेरित करता रहा। होमवती की चिंता थी कि हज़ारीलाल की मटरगश्ती उसे गलत रास्ते पर ले जा सकती है। एक दिन, जब सोनेलाल और हज़ारीलाल के बीच विवाद होता है, तो सोनेलाल गुस्से में अपने भाई को पीट देता है। होमवती इस स्थिति को देखती है और अपने भाई को सही रास्ते पर लाने का प्रयास करती है। अंततः, हज़ारीलाल काम सीखने का निर्णय लेता है और एक स्थानीय सोनार की दुकान में काम करने लगता है। धीरे-धीरे उसे अपने काम में रुचि होने लगती है और वह पिता की दुकान को फिर से शुरू करने के लिए तैयार होता है। पाठ का अंत इस बात पर होता है कि हज़ारीलाल अपने पिता के औजारों को खोजता है और अपनी पहचान और जिम्मेदारियों के प्रति सजग होता है। यह कहानी परिवार के सदस्यों के बीच संबंधों, संघर्षों और आत्म-निर्भरता की ओर उन्मुखीकरण को दर्शाती है।


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