दर्शन- दिग्दर्शन | Darshan- Digdarshan

By: राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan
दर्शन- दिग्दर्शन | Darshan- Digdarshan by


दो शब्द :

इस पाठ में मानवता के बौद्धिक विकास, विशेषकर दर्शन और विज्ञान के इतिहास का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया गया है। लेखक ने यह बताया है कि मानव का अस्तित्व पृथ्वी पर लाखों वर्षों से है, लेकिन उसके दिमाग की उड़ान का सबसे भव्य युग 5000-3000 ई. पू. के बीच रहा, जब खेती, नहर, और सौर पंचांग जैसे महत्वपूर्ण आविष्कार हुए। इसके बाद, 1760 ई. के बाद वैज्ञानिक आविष्कारों का सिलसिला शुरू हुआ। लेखक ने बताया है कि भारत में दर्शन का स्वतंत्र स्थान रहा है और इसे विज्ञान या कला का घटक नहीं माना जा सकता। वह धर्म के अधीन दर्शन के दासत्व पर भी प्रश्न उठाते हैं। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि बौद्धिक उन्नति का एक समय ऐसा भी आया जब मानव ने बहुत कम नए आविष्कार किए। 700 ई. पू. के बाद एक सुवर्ण युग की शुरुआत हुई, जिसमें उपनिषदों से लेकर बुद्ध तक के दर्शन का निर्माण हुआ। इस समय का दर्शन बहु-आयामी प्रगति की उपज है। लेखक ने यह भी कहा कि विभिन्न संस्कृतियों के बीच दर्शन का आदान-प्रदान हुआ, जो कि मानवता के विकास के लिए महत्वपूर्ण रहा। इस पाठ में यह भी वर्णित है कि दर्शन का एक महत्वपूर्ण समय 400 ई. के बाद भी रहा, जब पश्चिम में दर्शन ने अपनी उन्नति की। लेखक ने विभिन्न युगों में दर्शन की स्थिति का विश्लेषण किया और बताया कि भारतीय दर्शन ने इस्लामी दर्शन के समकालीन होते हुए भी अपने उत्थान को बनाए रखा। अंत में, लेखक ने इस बात की आवश्यकता व्यक्त की कि दर्शन पर और अधिक पुस्तकें लिखी जानी चाहिए, ताकि इसे व्यापक रूप से समझा जा सके। उन्होंने अपनी सहायता के लिए उन सभी का धन्यवाद किया जिन्होंने उन्हें इस पुस्तक को लिखने में सहयोग दिया।


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