भारतीय काव्य शास्त्र की भूमिका | Bhartiya kavya- Shastra ki Bhumika

By: डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra
भारतीय काव्य शास्त्र की भूमिका | Bhartiya  kavya- Shastra  ki Bhumika by


दो शब्द :

इस पाठ में भारतीय काव्य-शास्त्र के विशेष पहलुओं का विवेचन किया गया है। लेखक डॉ. नमेन्द्र ओरिरएुण्टक ने भारतीय काव्य-शास्त्र की भूमिका के द्वितीय भाग में रीति और वक्रोक्ति सिद्धांत पर ध्यान केंद्रित किया है। इस भाग में काव्य के विभिन्न सिद्धांतों का विश्लेषण किया गया है, जिसमें पूर्ववर्ती काव्य-शास्त्रियों के विचारों का संदर्भ दिया गया है। लेखक ने बताया है कि भारतीय काव्य-शास्त्र और पश्चिमी काव्य के दृष्टिकोण में समानताएं हैं, जो पुनःआवृत्ति और अन्य तत्वों के माध्यम से स्पष्ट होती हैं। पहले भाग में रस, ध्वनि और श्रृंगार सिद्धांतों का वर्णन किया गया था, और इस भाग में रीति और वक्रोक्ति का विवेचन किया जा रहा है। आचार्य वामन के काव्य सिद्धांतों का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें उन्होंने काव्य की परिभाषा, स्वरूप, प्रयोजन और विभिन्न भेदों का विवेचन किया है। वामन का योगदान भारतीय काव्य-शास्त्र में महत्वपूर्ण माना जाता है, और उनके सिद्धांतों को आगे बढ़ाने वाले अन्य विद्वानों का भी उल्लेख किया गया है। लेखक ने यह भी बताया है कि काव्य के तत्वों में दोष, अलंकार, और उनके प्रयोग की चर्चा की गई है। वामन के सिद्धांतों की मौलिकता और उनके विचारों का महत्व स्पष्ट किया गया है, जिससे यह ज्ञात होता है कि वे भारतीय काव्य-शास्त्र के विकास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इस प्रकार, पाठ भारतीय काव्य-शास्त्र के अध्ययन में वामन और अन्य विद्वानों के योगदान का संक्षिप्त और सारगर्भित विवरण प्रस्तुत करता है।


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