विष्णुधर्मोत्तर पुराण में प्रतिबिम्बित एवं संस्कृति | Society and Culture as Reflected in The Vishnudharmottara Puran

By: अलका तिवारी - Alka Tiwari
विष्णुधर्मोत्तर पुराण में प्रतिबिम्बित  एवं  संस्कृति | Society  and Culture  as  Reflected  in The Vishnudharmottara Puran by


दो शब्द :

इस पाठ में 'विष्णुधर्मोत्तर पुराण' के शोध पर चर्चा की गई है, जिसमें भारतीय धर्म, समाज और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण किया गया है। लेखक ने प्राचीन भारतीय साहित्य, विशेषकर पुराणों, के महत्व को उजागर किया है जो कि भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं। पुराणों को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानते हुए, लेखक ने यह बताया है कि धर्म ने इतिहास में जनसाधारण को आत्मबल और प्रेरणा प्रदान की है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी उन्हें संजीवनी शक्ति देता है। शोध में यह भी उल्लेख किया गया है कि बौद्ध और जैन आंदोलनों के बावजूद, पुराणों ने हिंदू धर्म की पुनर्स्थापना की और धार्मिक मान्यताओं को सरलता से जनता के बीच प्रस्तुत किया। लेखक ने यह तर्क किया है कि पुराणों में विभिन्न विषयों का समावेश किया गया है, जैसे- ज्योतिष, भूगोल, राजनीति, और कला, जिससे ये सिर्फ धार्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि सांस्कृतिक दस्तावेज भी बन जाते हैं। इस शोध के अंतर्गत यह भी कहा गया है कि पुराणों का उद्देश्य जनसाधारण में धार्मिक भावना का प्रचार करना और उन्हें धर्म की प्रेरणा देना था। लेखक ने कई विद्वानों और अपने गुरुजनों के प्रति आभार व्यक्त किया है, जिन्होंने इस शोध को संभव बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अंत में, लेखक ने स्पष्ट किया है कि पुराणों का महत्व उनके धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से है, और ये भारतीय जीवन में गहराई से जुड़े हुए हैं।


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