दो शब्द :

दशकुमार चरित के लेखक दंडिन् का नाम संस्कृत साहित्य में बहुत आदर के साथ लिया जाता है। उनके बारे में कई विद्वान अलग-अलग मत रखते हैं, जिनमें यह चर्चा होती है कि दंडिन् के तीन ग्रंथ हैं, जिनमें से एक दशकुमारचरित और दूसरा काव्यादर्श माना जाता है। तीसरे ग्रंथ के बारे में विद्वानों की राय भिन्न है; कुछ उन्हें मुच्छकटिक का लेखक मानते हैं, जबकि अन्य दंडिन् के ग्रंथों की संख्या को लेकर असहमत हैं। दंडिन् के जीवन और समय के बारे में भी जानकारी सीमित है। उनके पूर्वज आनंदपुर से आकर अचलपुर में बस गए थे। कई विद्वान यह मानते हैं कि दंडिन् का समय भामह से पहले का था, जबकि कुछ अन्य इसे ग्यारहवीं सदी का मानते हैं। दशकुमारचरित की शैली और विषय वस्तु पर भी विभिन्न मत हैं। कुछ विद्वान इसे दंडिन् की काव्यशैली में परिवर्तन के रूप में देखते हैं। इस ग्रंथ में कई सामाजिक मुद्दों का उल्लेख किया गया है, जैसे जुआ, चोरी, और व्यभिचार, जो काव्यादर्श में नहीं पाए जाते। कुछ विद्वान ने दंडिन् की कृतियों की तुलना अन्य ग्रंथों से की है, और यह निष्कर्ष निकाला है कि दंडिन् की शैली और विषय वस्तु उन समयों के समाज का वास्तविक चित्रण करती है। इसके विपरीत, अन्य विद्वान इसे बाद की रचनाओं से जोड़ने की कोशिश करते हैं। दशकुमारचरित की रचना के विभिन्न पहलुओं पर विचार करते हुए, यह स्पष्ट होता है कि दंडिन् का कार्य भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, किंतु उनके समय और कृतियों की सही पहचान अभी भी एक शोध का विषय है।


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