राजस्थान की प्रशासनिक व्यवस्था (१५७४ से -१८१८ ई.) | Rajasthan Ki Prsashasnik Vyavastha ( 1674 -1818 )

- श्रेणी: Freedom and Politics | आज़ादी और राजनीति इतिहास / History भारत / India
- लेखक: जी. एस. एल. देवड़ा - G. S.L. Devda
- पृष्ठ : 299
- साइज: 5 MB
- वर्ष: 1981
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दो शब्द :
पुस्तक "राजस्थान की प्रशासनिक व्यवस्था (१५७४ से १८१८ ई.)" का उद्देश्य राजस्थान के रेतीले क्षेत्रों, विशेषकर बीकानेर राज्य की प्रशासनिक संरचना का अध्ययन करना है। यह अवधि भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण बदलावों का गवाह है, जिसमें मुगलों की सत्ता से सन्धि और उसके परिणामस्वरूप क्षेत्रीय नृपतंत्र का सुदृढ़ीकरण शामिल है। राजस्थान की भौगोलिक विविधताओं के चलते इसकी प्रशासनिक व्यवस्था भी विविध रही है। यहाँ के लोगों ने विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए अपनी संस्कृति और धरोहर को सुरक्षित रखा। पुस्तक में यह उल्लेखित है कि रेतीले क्षेत्रों में बसे लोग अपनी सीमित संसाधनों के बावजूद प्रशासनिक ढांचे को सुदृढ़ करने में सफल रहे, जिससे स्थानीय परंपराओं और विशेषताओं का संरक्षण हुआ। पुस्तक के लेखक ने अभिलेखीय सामग्री के माध्यम से बीकानेर राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था का गहन अध्ययन किया है, जिसमें शासन के विभिन्न पहलुओं, जैसे कि आदेशों का कार्यान्वयन और प्रजा का पालन, को शामिल किया गया है। यह अध्ययन प्रशासनिक वर्ग के तीन मुख्य तत्व - राजा, सामन्त और युज्यवादी - के दृष्टिकोण से किया गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि कैसे इन तत्वों ने प्रशासन की संरचना और विकास में योगदान दिया। राजस्थान की प्रशासनिक व्यवस्था का यह अध्ययन न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह वर्तमान में भी प्रासंगिकता रखता है। लेखक ने विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी को संकलित कर एक समृद्ध दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है, जो इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी साबित हो सकता है। पुस्तक में स्थानीय भाषाई शब्दों का भी उपयोग किया गया है, जिससे पाठक को क्षेत्र की सांस्कृतिक विविधता का अनुभव होता है। इस प्रकार, "राजस्थान की प्रशासनिक व्यवस्था (१५७४ से १८१८ ई.)" एक महत्वपूर्ण शोधपत्र है, जो राजस्थान के इतिहास और प्रशासनिक संरचना के जटिल पहलुओं को उजागर करता है।
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