पल्लव | Pallav

- श्रेणी: उपन्यास / Upnyas-Novel साहित्य / Literature
- लेखक: श्री-सुमित्रानंदन-पन्न्त - Sri Sumitranand
- पृष्ठ : 213
- साइज: 16 MB
- वर्ष: 1982
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दो शब्द :
इस पाठ में कवि ने अपनी काव्य-रचनाओं के बारे में विचार व्यक्त किए हैं। कवि ने यह बताया है कि उन्होंने अपने अनुभवों और भावनाओं को काव्य के माध्यम से व्यक्त किया है और यह भी बताया है कि उन्होंने अपनी रचनाओं में विभिन्न शब्दों का चयन कैसे किया है। वह अपनी कविताओं को "पत्र पुष्प" नहीं मानते, बल्कि उन्हें "पद्चव" के रूप में देखते हैं। कवि ने अपनी रचनाओं में भाषा और व्याकरण के प्रयोग पर भी विचार किया है। उन्होंने यह स्वीकार किया है कि कभी-कभी उन्होंने व्याकरणिक नियमों को तोड़ा है, लेकिन यह उनकी रचनात्मकता के विकास के लिए आवश्यक था। उन्होंने शब्दों के चयन में अपनी व्यक्तिगत पसंद और श्रुतिमधुरता का ध्यान रखा है। पाठ में कवि ने यह भी कहा है कि हिन्दी कविता में एक नया युग आ रहा है और कवियों को अपने ज्ञान और अनुभव को साझा करते रहना चाहिए। उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि साहित्य और कविता का विकास निरंतर हो रहा है और उन्हें उम्मीद है कि आने वाले समय में हिन्दी साहित्य और भी समृद्ध होगा। कुल मिलाकर, यह पाठ कवि की रचनात्मकता, उनके विचारों और हिन्दी कविता के विकास को दर्शाता है।
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