सत्य की खोज | Satya  ki khojh by


दो शब्द :

इस पाठ में मौलाना वहीदुद्दीन खाँ ने सत्य की खोज के संदर्भ में विचार प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने जगत को एक विशाल किताब के रूप में वर्णित किया है, जिसमें विषय और लेखक का नाम स्पष्ट नहीं है, फिर भी यह किताब अपने आप में संकेत देती है कि इसका विषय क्या है और लेखक कौन है। इंसान जब अपनी आंखें खोलता है, तो उसे अपने अस्तित्व और संसार की वास्तविकता को समझने की जिज्ञासा होती है। यह जिज्ञासा उसे कई प्रश्नों की ओर ले जाती है, जैसे "मैं कौन हूं?" और "यह संसार क्या है?" ये प्रश्न केवल दार्शनिक नहीं हैं, बल्कि मानव के स्वभाव और उसके हालात से उत्पन्न होते हैं। कई लोग इन प्रश्नों के उत्तर न मिलने पर मानसिक परेशानियों का सामना करते हैं, जबकि कुछ लोग तुच्छ चीजों में खोकर इस मानसिक संकट से बचने की कोशिश करते हैं। सत्य की खोज को मौलाना ने तीन प्रमुख प्रश्नों में विभाजित किया है: सृष्टा की खोज, उपास्य (माबूद) की खोज, और अंत की खोज। ये प्रश्न मानवता की मूलभूत जिज्ञासाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। मौलाना का कहना है कि इन प्रश्नों के उत्तर वास्तव में जगत के भीतर ही मौजूद हैं, और अगर हमें सत्य का ज्ञान हो जाए, तो हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि यही सत्य है। सृष्टा की खोज का प्रश्न सबसे पहले मानव मन में उभरता है—इस जगत को बनाने वाला कौन है? ऐतिहासिक दृष्टिकोण से, लोग इसे कई शक्तियों का परिणाम मानते थे, जबकि आधुनिक विज्ञान इसे संयोग या घटनाओं की श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत करता है। मौलाना ने इस विचार को चुनौती दी है और सत्य की खोज के महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए इसे मानव जीवन का अनिवार्य हिस्सा बताया है।


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