प्रतिमा-नाटकम | Pratima- Natakam

By: श्री-रामचन्द्र-मिश्र - Sri Ramchandra Mishra
प्रतिमा-नाटकम | Pratima- Natakam by


दो शब्द :

इस पाठ में महाकवि श्रीभास द्वारा रचित "ग्रतिमा-नाटक" का उल्लेख किया गया है। इसमें भास के नाटकों का ऐतिहासिक और साहित्यिक महत्व बताया गया है। भास का नाटक-चक्र विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिसमें उनकी रचनाएँ संस्कृत साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। पाठ में भास के नाटकों की खोज और उनके अध्ययन पर भी चर्चा की गई है, जिसमें विभिन्न विद्वानों द्वारा उनके नाटकों की पहचान और विश्लेषण किया गया है। भास के नाटकों में "स्वप्नवासवदत्तम्" और "नारद-चक्र" का उल्लेख किया गया है, और यह बताया गया है कि कैसे भास का साहित्यिक योगदान समय के साथ भुला दिया गया था लेकिन हाल के समय में इसे पुनः खोजा गया है। पाठ में नाटक की संरचना और उसके विभिन्न पात्रों के बीच संवादों का भी वर्णन है। नाटक के मुख्य कथानक में राजा दशरथ का राज्याभिषेक, सीता का राम के साथ संवाद, और अंततः राम का वनवास का निर्णय शामिल है। यह घटनाक्रम न केवल भास के नाटकों की कहानी को आगे बढ़ाता है, बल्कि उन पात्रों के भावनात्मक संघर्ष और घटनाओं की गहराई को भी उजागर करता है। इस प्रकार, इस पाठ में नाटक के साहित्यिक मूल्य, भास की काव्यात्मक प्रतिभा, और उनके नाटकों के भीतर छिपे गहन भावनात्मक और सामाजिक मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है।


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