तत्व- चिंतामणि | Tatva -Chintamani

By: हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar


दो शब्द :

इस पाठ में आधुनिक समय में बढ़ती नास्तिकता और भौतिकता के प्रति चिंता व्यक्त की गई है। लेखक ने कहा है कि इस युग में ईश्वर और ईश्वरीय विचारों को महत्व नहीं दिया जा रहा है, और भक्ति तथा साधना की बातें अनावश्यक समझी जा रही हैं। भौतिक उन्नति को मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य मान लिया गया है, जबकि आध्यात्मिकता को नजरअंदाज किया जा रहा है। लेखक ने अनुभव किया है कि भारत की आध्यात्मिक जड़ों में अभी भी मजबूती है, और सच्चे साधुओं और आचार्यों का अस्तित्व बना हुआ है, भले ही उनकी संख्या में कमी आई हो। उन्होंने यह भी बताया है कि महान पुरूषों का संग दुर्लभ है, और ऐसे व्यक्तियों की पहचान करना कठिन होता है। पुस्तक में लेखक ने अपने विचारों को साझा किया है, लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया है कि ये केवल उनकी व्यक्तिगत धारणाएं हैं और उन्हें किसी पर थोपने का प्रयास नहीं किया गया है। पाठकों से यह निवेदन किया गया है कि वे पुस्तक को ध्यान से पढ़ें और यदि कोई विचार उन्हें लाभदायक लगे तो उसे अपनाएं। लेखक ने गीता का भी संदर्भ दिया है और बताया है कि गीता में भक्ति, ज्ञान और कर्म का सही संतुलन है। गीता में भक्ति को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है, और यह स्पष्ट किया गया है कि भक्ति केवल अंधविश्वास नहीं है, बल्कि यह विवेकपूर्ण और सक्रिय होना चाहिए। अंत में, लेखक ने पाठकों से अपील की है कि वे निष्काम कर्म करते हुए भगवान का स्मरण करें और अपने जीवन में भक्ति और सदाचार को अपनाएं।


Please share your views, complaints, requests, or suggestions in the comment box below.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *