अजातशत्रु | Ajatshatru

By: जयशंकर प्रसाद - jayshankar prasad
अजातशत्रु | Ajatshatru by


दो शब्द :

इस पाठ में अजातशत्रु नामक ऐतिहासिक नाटक की चर्चा की गई है, जिसमें प्रसाद जी के नाटक लेखन की विशेषताओं का वर्णन किया गया है। लेखक ने बताया है कि प्रसाद जी हिन्दी साहित्य के उन गिने-चुने लेखकों में से हैं जिन्होंने मातृभाषा में मौलिकता की शुरुआत की। उनके नाटक न केवल मौलिक हैं, बल्कि वे हिन्दी साहित्य में एक नए युग की शुरुआत करते हैं। लेखक का मानना है कि प्रसाद जी के नाटकों में विचार, कथानक और लक्ष्य की दृष्टि से एक नई दिशा है, जो भविष्य में अन्य लेखकों के लिए प्रेरणा बन सकती है। लेख में यह भी कहा गया है कि नाटक में अंतर्विरोध की आवश्यकता होती है, जो उसे उच्च श्रेणी का बनाता है। प्रसाद जी के नाटकों में चरित्रों की गहराई और मानवता के आदर्शों का चित्रण किया गया है। उनके पात्र न केवल नाटक के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे मानवता के लिए भी प्रेरणा स्रोत हैं। बिम्बसार का चरित्र, जो नाटक में एक जटिल स्थिति का सामना करता है, इसके उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसके अतिरिक्त, लेखक ने यह उल्लेख किया है कि प्रसाद जी ने अपने नाटकों में ऐतिहासिक पात्रों और घटनाओं को जीवंतता के साथ प्रस्तुत किया है, जिससे वे आधुनिक समय की समस्याओं से भी जुड़े हैं। नाटक के पात्रों की आचार-व्यवहार और सामाजिक जीवन को उन्होंने सही रूप में दर्शाया है। समाज में विद्यमान विभिन्न धाराओं और संघर्षों का भी यहां जिक्र किया गया है, जो नाटक के माध्यम से प्रकट होते हैं। इसके साथ ही, यह भी बताया गया है कि मानवता के आदर्शों को स्पष्ट रूप से प्रसाद जी के पात्रों में देखा जा सकता है, जो पाठकों को सोचने पर मजबूर करते हैं। लेखक ने अंत में कहा है कि पाठक स्वयं इस नाटक को पढ़कर उसकी समीक्षा कर सकते हैं।


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