गणित सार - संग्रह | Ganitsar - Sangrah

- श्रेणी: गणित / Mathematics
- लेखक: महावीर - Mahaveer
- पृष्ठ : 430
- साइज: 19 MB
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दो शब्द :
यह पाठ जीवराज जैन प्रंथमाला के बारे में है, जो एक धार्मिक और सामाजिक कार्यकर्ता थे। उन्होंने सन् 1940 में अपनी संपत्ति का उपयोग धर्म और समाज की उन्नति के लिए करने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने देशभर में यात्रा की और जैन विद्वानों से बातचीत की कि कैसे अपनी संपत्ति का सर्वोत्तम उपयोग किया जाए। सन् 1941 में, उन्होंने एक विद्वत्सम्मेलन आयोजित किया जिसमें जैन संस्कृति और साहित्य के संरक्षण, उद्धार और प्रचार के लिए 'जैन संस्कृति संरक्षक संघ' की स्थापना की। इसके तहत उन्होंने 20,000 से 30,000 रुपये का दान देने की घोषणा की और बाद में 2,00,000 रुपये की संपत्ति संघ को ट्रस्ट के रूप में समर्पित कर दी। जीवराज जैन ने अपने जीवन के अंत में समाधिमरण की आराधना की और अपने समस्त संसाधनों का त्याग किया। उनका योगदान जैन संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण माना जाता है। पाठ में जैन साहित्य और संस्कृति के संरक्षण के लिए उनके प्रयासों का उल्लेख है, साथ ही उनकी प्रेरणा से स्थापित ग्रंथों का भी उल्लेख किया गया है।
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