ललिता | Lalita

- श्रेणी: उपन्यास / Upnyas-Novel साहित्य / Literature
- लेखक: - पं. चन्द्रशेखर पाठक - pt. Chandrashekhar Pathak
- पृष्ठ : 144
- साइज: 41 MB
- वर्ष: 1925
-
-
Share Now:
दो शब्द :
यह पाठ शरत्चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास "परिणीता" के अनुवाद का एक अंश है। इसमें गुरुचरण नामक पात्र की कठिनाइयों, चिंताओं और उनके परिवार की स्थिति का वर्णन किया गया है। गुरुचरण एक गरीब व्यक्ति हैं, जिनकी पत्नी ने एक कन्या को जन्म दिया है, जिससे उनके मन में नई चिंताएँ जन्म लेती हैं। वे पहले से ही अपनी दो कन्याओं के विवाह की चिंता में हैं और अब एक और कन्या के जन्म से उनकी आर्थिक स्थिति और अधिक दयनीय हो गई है। गुरुचरण की मानसिक स्थिति, जो उनके मन में चल रहे आर्थिक संकटों और विवाह की चिंताओं को दर्शाती है, पाठ में स्पष्ट रूप से दिखती है। उनके पास विवाह के लिए पैसे नहीं हैं और वे अपनी बेटियों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। उनकी बड़ी चिंता ललिता नामक कन्या की है, जिसे वे एक राजा के घर में ब्याहना चाहते हैं लेकिन आर्थिक स्थिति के कारण वह संभव नहीं हो पा रहा है। पाठ में ललिता का चरित्र भी उभर कर आता है, जो अपने परिवार की जिम्मेदारियों को समझती है और रसोई का काम करने की इच्छा व्यक्त करती है। गुरुचरण अपने भतीजे शेखर से भी चर्चा करते हैं, जो उनकी चिंता को समझता है और उनकी मदद करने का आश्वासन देता है। इस प्रकार, पाठ में सामाजिक और आर्थिक दबावों के बीच एक परिवार की व्यथा को चित्रित किया गया है, जो न केवल मनोरंजन बल्कि समाज की वास्तविकताओं पर भी प्रकाश डालता है।
Please share your views, complaints, requests, or suggestions in the comment box below.