कबीर काव्य कोष | Kabir kavya kosh

- श्रेणी: काव्य / Poetry हिंदी / Hindi
- लेखक: वासुदेव सिंह - Dr. Vasudev Singh
- पृष्ठ : 466
- साइज: 17 MB
- वर्ष: 1977
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दो शब्द :
इस पाठ में कबीर दास की भाषा और उनके शब्द-ज्ञान की विशेषताओं का वर्णन किया गया है। कबीर ने विभिन्न भारतीय भाषाओं जैसे ब्रज, अवधी, भोजपुरी, पंजाबी और गुजराती के साथ-साथ अरबी और फारसी के शब्दों का भी अपने काव्य में प्रयोग किया। उनका शब्द-भाण्डार असीम है और उन्होंने शब्दों का चयन जन-जीवन से किया है। कबीर के द्वारा प्रयुक्त कुछ शब्द अब प्रचलन में नहीं हैं, और उनके अर्थों को समझना कठिन हो गया है। कबीर ने विभिन्न व्यवसायों और जातियों से जुड़े शब्दों का उपयोग किया, जो अब अप्रचलित हो गए हैं। उदाहरण के लिए, उन्होंने लोहार, कुम्हार, और जुलाहा जैसे शब्दों का प्रयोग किया है। इसके अलावा, कबीर ने अरबी-फारसी शब्दों का भी समावेश किया, जो उस समय के मुस्लिम शासन में प्रचलित थे। कबीर के काव्य में संस्कृत के तत्सम शब्दों का भी प्रयोग मिलता है, जो उनकी बहुज्ञता को दर्शाता है। कबीर के काव्य में पारिभाषिक और प्रतीकात्मक शब्दों की भरपूरता है, जो अर्थ की जटिलता पैदा करते हैं। उन्होंने अनेक शब्दों का विभिन्न संदर्भों में भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग किया है, जिससे पाठकों के लिए अर्थ निकालना कठिन हो जाता है। इस पाठ में कबीर के शब्द-ज्ञान को दर्शाने के लिए कई शब्दों के उदाहरण दिए गए हैं, और यह बताया गया है कि कबीर के काव्य को समझने में आने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए 'कबीर काव्य कोश' तैयार किया गया है। इस प्रकार, कबीर का काव्य भाषा की विविधता और गहराई का प्रतीक है, जिसमें विभिन्न भाषाओं और बोलियों के शब्दों का समावेश किया गया है, साथ ही जीवन के विभिन्न पहलुओं से जुड़े अर्थों का भी ध्यान रखा गया है।
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