कब तक पुकारूं | Kab Tak Pukaroon

By: रांगेय राघव - Rangeya Raghav
कब तक पुकारूं | Kab Tak Pukaroon by


दो शब्द :

इस पाठ में विभिन्न जातियों और उनके सामाजिक नियमों की चर्चा की गई है। लेखक ने विभिन्न समुदायों के विवाह, पेशे, और पारिवारिक ढांचे का विवरण प्रस्तुत किया है। धोवियों और चमारों जैसी जातियों के संबंध में यह बताया गया है कि उनके बीच विवाह के नियम कैसे काम करते हैं। चमारों का गोत्र बताने का तरीका और उनके पितृसत्तात्मक समाज के प्रभाव का भी उल्लेख किया गया है। रत राजपाल एण्ड सन्स, कश्मीरी गेट, दिल्ली में रहने वाले करनट जाति के लोगों की सामाजिक स्थिति पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है। करनट जाति की महिलाओं की स्वतंत्रता और उनके नृत्य व कला के प्रदर्शन की चर्चा की गई है। यह भी बताया गया है कि ये लोग भिक्षाटन करते हैं और अपनी परंपराओं को ईश्वरीय मानते हैं। लेखक ने सुखराम नामक करनट व्यक्ति के माध्यम से ग्रामीण जीवन की कठिनाइयों और उनकी परंपराओं का चित्रण किया है। सुखराम की बेटी चंदा के माध्यम से यह दर्शाया गया है कि कैसे ग्रामीण जीवन में जीवनशैली और परंपराएं बुनियादी हैं। इस पाठ में यह भी संज्ञान में लाया गया है कि कैसे गांव की सामाजिक और सांस्कृतिक धारा आधुनिकता के प्रभाव में बदल रही है। अंत में, लेखक ने अपने अनुभवों और विचारों के माध्यम से यह संदेश दिया है कि गांव की वास्तविकता और परंपराएं कितनी जटिल और महत्वपूर्ण हैं, जबकि शहरी जीवन की चुनौतियाँ और उनके विचार भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं।


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