श्री श्री चैतन्य चरितावली खण्ड -१ | Shri Shri Chaitanya Charitawali Khand -1

By: श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari


दो शब्द :

इस पाठ में महाप्रभु श्रीचैतन्यदेव के काल के भारत की राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक स्थितियों का वर्णन किया गया है। सोलहवीं शताब्दी में चैतन्य महाप्रभु का प्राकट्य हुआ, जब भारत में विभिन्न प्रकार की क्रांतियां चल रही थीं। उस समय भारत की राजनीतिक स्थिति बहुत अस्थिर थी, राजाओं के बीच युद्ध और संघर्ष हो रहे थे, और दिल्ली का सिंहासन कई बार बदल चुका था। सामाजिक स्थिति भी कठिन थी; हिन्दू और मुसलमानों के बीच कट्टरता और भेदभाव स्पष्ट था। हिन्दू समाज में उच्च जातियों का प्रभुत्व था, और निम्न जातियों के लोगों को कई धार्मिक कृत्यों से वंचित रखा जाता था। ऐसे समय में भक्तिवाद की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। महाप्रभु चैतन्यदेव का योगदान इस स्थिति में महत्वपूर्ण था। उन्होंने प्रेम और भक्ति के माध्यम से लोगों को जोड़ने का प्रयास किया। चैतन्य महाप्रभु के समय में कई अन्य महापुरुष भी उत्पन्न हुए, जिन्होंने वैष्णव धर्म का प्रचार किया और भक्ति की भावना को बढ़ावा दिया। इस प्रकार, इस पाठ में चैतन्य महाप्रभु की महत्ता, उनके समय की सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियों, और भक्ति आंदोलन के विकास की चर्चा की गई है। यह काल एक महान क्रांतिकारी युग था, जिसने भारतीय समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने का प्रयास किया।


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