योग- मनोविज्ञान | Indian Psychology

- श्रेणी: मनोवैज्ञानिक / Psychological योग / Yoga साहित्य / Literature
- लेखक: शांति प्रकाश आत्रेय - Shanti Prakash Atreya
- पृष्ठ : 578
- साइज: 28 MB
- वर्ष: 1935
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दो शब्द :
इस पाठ में योग और विज्ञान के संबंध में विस्तृत चर्चा की गई है। लेखक डॉ. शान्ति प्रकाश श्रात्रेय ने चक्रों और नाड़ी जाल का वर्णन किया है, जो भारतीय योग विद्या का एक महत्वपूर्ण पहलू है। पाठ में बताया गया है कि शरीर में सात चक्र होते हैं, जिनमें से प्रत्येक का संबंध विशिष्ट ऊर्जा केंद्रों से है। ये चक्र मानव की मानसिक चेतना के विभिन्न स्तरों को दर्शाते हैं और योग साधना के माध्यम से इन चक्रों की शुद्धि द्वारा व्यक्ति अपनी चेतना को उच्च स्तर पर ले जा सकता है। लेखक ने योग के महत्व और इसके लाभों का वर्णन करते हुए बताया है कि योग साधना से व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रह सकता है। यह न केवल भौतिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है, बल्कि यह मानसिक विकास और आत्मा के उन्नयन में भी सहायक है। योग के माध्यम से व्यक्ति अपने वासनाओं से मुक्त होकर उच्चतर चेतना का अनुभव कर सकता है, जो जीवन के नित्य नियमों के साथ सामंजस्य स्थापित करने में मदद करता है। पाठ में विभिन्न योग विधियों का उल्लेख भी किया गया है, जैसे अष्टांग योग और शडग योग, जो साधक को आत्मज्ञान की ओर ले जाते हैं। लेखक ने यह भी बताया है कि योग का यह ज्ञान प्राचीन काल से चला आ रहा है और यह भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। अंत में, लेखक ने इस विषय पर चिंतन करते हुए योग और मनोविज्ञान के संबंध को स्पष्ट किया है, यह बताते हुए कि कैसे योग साधना व्यक्ति की चेतना को ऊँचाई पर पहुँचाने में सहायक होती है और यह ध्यान एवं समाधि के माध्यम से उच्चतर अनुभव की प्राप्ति में मदद करती है।
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