मूक माटी ( महाकाव्य) | Mook Maati( Mahakavya)

- श्रेणी: Vedanta and Spirituality | वेदांत और आध्यात्मिकता साहित्य / Literature
- लेखक: आचार्य विद्यासागर - Acharya Vidyasagar
- पृष्ठ : 514
- साइज: 7 MB
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दो शब्द :
"मूक माटी" आचार्य विद्यासागर द्वारा रचित एक महाकाव्य है, जो भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण कृति मानी जाती है। यह रचना मिट्टी जैसे साधारण और तुच्छ विषय को महाकाव्य का रूप देकर उसकी गहराई और भव्यता को उजागर करती है। इसमें मिट्टी की विशुद्धता और उसकी मुक्ति की यात्रा को एक रूपक के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो मानव जीवन के अध्यात्मिक पहलुओं को छूता है। कविता में प्राकृतिक दृश्यों का विस्तृत वर्णन है, जो पाठक को माटी की वेदना और उसकी स्थिति का अनुभव कराता है। माटी और कुम्भकार के बीच की संवादात्मक प्रक्रिया में जीवन-दर्शन की गहराई और अर्थ निहित है। काव्य में माटी की प्राथमिक अवस्था से उसकी शुद्धता प्राप्त करने की यात्रा को चार खंडों में बाँटकर दिखाया गया है। पहला खंड माटी की शुद्धता की प्रक्रिया को दर्शाता है, जिसमें कुम्भकार माटी को खोजता है और उसे कंकड़ों से मुक्त करता है। दूसरे खंड में शब्द और बोध के बीच के संबंध को समझाया गया है। तीसरा खंड पुण्य और पाप के बीच के संतुलन को प्रस्तुत करता है, जबकि चौथा खंड अंतिम परीक्षा और सफलता की ओर इंगित करता है। काव्य में शब्दों के अलंकार और अर्थ का गहराई से उपयोग किया गया है, जो कविता की भावनाओं और विचारों को और भी प्रगाढ़ बनाता है। यह रचना न केवल काव्यात्मक दृष्टि से समृद्ध है, बल्कि यह मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे तपस्या, साधना, और गुरु-शिष्य परंपरा को भी छूती है। "मूक माटी" एक दार्शनिक दृष्टिकोण से जीवन की जटिलताओं को सरलता से प्रस्तुत करती है और पाठक को सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे साधारण चीजों में भी गहराई और अर्थ छिपा होता है। यह महाकाव्य न केवल एक साहित्यिक कृति है, बल्कि यह एक जीवनदर्शन भी प्रस्तुत करता है, जो पाठकों को आध्यात्मिकता और साधना की ओर प्रेरित करता है।
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