प्रेम है द्वार प्रभु का | prem Hai Dwar Prabhu Ka

- श्रेणी: Vedanta and Spirituality | वेदांत और आध्यात्मिकता साहित्य / Literature
- लेखक: आचार्य श्री रजनीश (ओशो) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)
- पृष्ठ : 236
- साइज: 8 MB
-
-
Share Now:
दो शब्द :
इस पाठ में आचार्य रजनीश के विचारों और उनके जीवन का वर्णन किया गया है। वे एक दृष्टा और विचारक हैं, जो जीवन के गहरे अनुभवों को अपने प्रवचनों में साझा करते हैं। उनका जन्म 1931 में मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में हुआ था। उन्होंने दर्शनशास्त्र में एम.ए. किया और बाद में शिक्षण कार्य में संलग्न हुए। अपने जीवन का अधिकांश समय उन्होंने साधना और ध्यान के लिए समर्पित किया। आचार्य रजनीश का मानना है कि मानवता हमेशा से भय, चिंता और दुख से ग्रस्त रही है। वे इस बात को स्पष्ट करते हैं कि भय ही मनुष्य के जीवन का मूल आधार है और यही कारण है कि लोग विभिन्न साधनों और शक्तियों की खोज में लगे रहते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि सच्चे प्रेम और आनंद की अनुभव की आवश्यकता है, जो केवल भय से मुक्त होने पर ही संभव है। वे जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहराई से विचार करते हैं और यह समझाते हैं कि भौतिक संपत्ति और सत्ता की खोज भी अंततः भय से ही प्रेरित होती है। उनके प्रवचनों में प्रेम, शांति और मुक्ति की खोज का महत्व है। पाठ में उनके जीवन के लक्ष्य, साधना के अनुभव और उनके विचारों की गहराई का विस्तार से वर्णन किया गया है। आचार्य रजनीश का उद्देश्य लोगों को जागरूक करना और उन्हें जीवन में प्रेम और आनंद की ओर ले जाना है। उनके विचारों में एक गहरी खोज और अनुभव की गहराई है, जो लोगों को आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करती है।
Please share your views, complaints, requests, or suggestions in the comment box below.