महाकवि भास | Mahakavi Bhas

By: बलदेव उपाध्याय - Baldev upadhayay
महाकवि भास  | Mahakavi Bhas by


दो शब्द :

इस पाठ में संस्कृत नाटककार भास के नाटकों और उनके महत्व पर चर्चा की गई है। भास को संस्कृत साहित्य में एक प्रमुख स्थान दिया गया है, और उनके नाटक कालिदास जैसे अन्य महान कवियों द्वारा भी सम्मानित किए गए हैं। भास के नाटकों की विशेषता यह है कि वे सूत्रधार से आरंभ होते हैं और इनमें नान्दी (प्रस्तावना) की पारंपरिक भूमिका नहीं होती। भास के नाटकों में हास्य और विभिन्न भावनाओं का सफलतापूर्वक चित्रण किया गया है। भास के कार्यों का उल्लेख विभिन्न साहित्यिक कृतियों में मिलता है, जिसमें उनके नाटकों की प्रशंसा की गई है। उदाहरण के लिए, अन्य कवियों जैसे जयदेव और राजशेखर ने भास के नाटकों के गुणों और उनके कथानक की विशिष्टता का उल्लेख किया है। भास के नाटकों की लोकप्रियता का प्रमाण यह है कि उनके बारे में कई लेखन और टीकाएँ भी उपलब्ध हैं। पं. गणपति शास्त्री ने भास के नाटकों को प्रकाशित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे भास की रचनाएँ आधुनिक समय में भी पाठकों तक पहुँच सकीं। पाठ में यह भी संदर्भित किया गया है कि भास के नाटक न केवल उनकी रचनात्मकता को दर्शाते हैं, बल्कि संस्कृत नाटक की परंपरा में भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। अंत में, भास के नाटकों के प्रति कवियों और आलोचकों की रुचि और उनके योगदान का मूल्यांकन किया गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भास का कार्य भारतीय साहित्य में एक अमूल्य धरोहर के रूप में स्थापित है।


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