मुद्रा तथा बैंकिंग | Money and Banking

- श्रेणी: अर्थशास्त्र / Economics
- लेखक: आर-सी-गुप्ता - r-c-gupta
- पृष्ठ : 590
- साइज: 12 MB
- वर्ष: 1961
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दो शब्द :
इस पाठ में मुद्रा के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। मुद्रा की परिभाषा, कार्य और महत्व को समझाते हुए बताया गया है कि मुद्रा उपभोक्ताओं को अपनी क्रय शक्ति का सही उपयोग करने में मदद करती है। इससे श्रम का विभाजन और विनिमय संभव होता है, जो बाजार को विस्तृत करता है। मुद्रा के बिना उत्पादन और वितरण का कार्य करना कठिन हो जाता है। पाठ में यह भी उल्लेख किया गया है कि मुद्रा का उपयोग सामाजिक न्याय और राज्य वित्त में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह करों के माध्यम से सामाजिक कल्याण के लिए धन जुटाने में सहायक होती है। इसके अलावा, मुद्रा ने आर्थिक और औद्योगिक विकास में भी महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है, जिससे लोगों को आर्थिक स्वतंत्रता मिली है। सामाजिक जीवन में मुद्रा की भूमिका पर भी चर्चा की गई है। यह लोगों के बीच संबंधों को मजबूत बनाती है और विभिन्न संस्कृतियों के बीच संपर्क बढ़ाती है। मुद्रा ने राजनीतिक जागरूकता भी बढ़ाई है, जिससे लोग शासन की प्रक्रियाओं में अधिक रुचि लेने लगे हैं। हालांकि, मुद्रा के कुछ दोष भी हैं। इसके अत्यधिक प्रयोग से आर्थिक अस्थिरता, बेरोजगारी और सामाजिक बुराइयों का जन्म हो सकता है। पाठ में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए मुद्रा आवश्यक हो गई है, जिससे नैतिकता की हानि हो सकती है। अंततः, यह कहा गया है कि बिना मुद्रा के किसी भी जटिल अर्थव्यवस्था का कुशल संचालन संभव नहीं है।
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