सोना और खून ( प्रथम भाग) | Sona aur Khoon (bhag-1)

- श्रेणी: इतिहास / History साहित्य / Literature
- लेखक: आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri
- पृष्ठ : 295
- साइज: 70 MB
- वर्ष: 1959
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दो शब्द :
इस पाठ में उपन्यास "सोना और खून" का सारांश प्रस्तुत किया गया है। उपन्यास में खून और सोने के बीच के संबंध को गहराई से विश्लेषित किया गया है। लेखक ने बताया है कि सोना मनुष्य के जीवन में एक महत्वपूर्ण वस्तु है, जो जीवन को सजाने का माध्यम है, लेकिन इसके लिए मनुष्य अपने खून की एक-एक बूँद बहाने को तैयार है। इस प्रकार, सोने और खून के बीच का लेन-देन मनुष्य के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है। लेखक ने यह भी बताया कि सभ्य समाज में खून और सोने का व्यापार मनुष्य को विनाश की ओर ले जा रहा है। मनुष्य अब अपने ही विनाश के लिए जिम्मेदार बन गया है। सुधारक लोग बेहतर भविष्य की कल्पना करते हैं, लेकिन वास्तविकता में संघर्ष और युद्ध का माहौल है। इसके अलावा, पाठ में यूरोप की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें बताया गया है कि कैसे औद्योगिक क्रांति और कूटनीति ने ब्रिटिश साम्राज्य को मजबूत किया और भारत में उनकी विजय में योगदान दिया। उपन्यास में खून और सोने के माध्यम से मानवता के संघर्ष और उसके परिणामों को उजागर किया गया है, जो कि अंततः मानवता के लिए एक गंभीर चेतावनी है।
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