सूर्यसारिणी | Suryasarini

- श्रेणी: ग्रन्थ / granth धार्मिक / Religious संस्कृत /sanskrit
- लेखक: गोरख प्रसाद - Gorakh Prasad
- पृष्ठ : 46
- साइज: 3 MB
- वर्ष: 1963
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दो शब्द :
इस पाठ में ज्योतिष के एक महत्वपूर्ण पहलू, विशेषकर सूर्य और चंद्रमा की गणना और उनके भोगांश (Longitude) की गणना की विधियों का विवरण दिया गया है। इसमें विभिन्न सारणियों का उपयोग करते हुए भोगांश की सटीक गणना के लिए आवश्यक तकनीकी प्रक्रियाओं का वर्णन किया गया है। पाठ में बताया गया है कि भोगांश की गणना करने के लिए विशेष उपकरणों और विधियों की आवश्यकता होती है। यह बताया गया है कि गणना के दौरान साधारण असावधानी से भोगांश में अशुद्धि आ सकती है, लेकिन इन सारणियों के माध्यम से गणना की शुद्धता को बढ़ाया जा सकता है। सरणियों का उपयोग कर गणना करने के लिए विभिन्न समय मापों को समझाया गया है, जैसे कि भारतीय समय और ग्रिनिच समय के बीच का अंतर। पाठ में यह भी उल्लेख किया गया है कि गणना के लिए उच्च गणित की आवश्यकता नहीं है, बल्कि साधारण गणितीय क्रियाओं का उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा, पाठ में धूनन-संस्कार (nutation) और अयनांश (obliquity) की अवधारणाओं का भी उल्लेख किया गया है, जो सूर्य और चंद्रमा की स्थिति को प्रभावित करते हैं। पाठ में यह भी बताया गया है कि भोगांश की गणना के लिए किस तरह के संशोधनों की आवश्यकता होती है और इनका उपयोग कैसे किया जा सकता है। अंत में, पाठ में यह संकेत दिया गया है कि भारतीय ज्योतिष में भोगांश की गणना करने के लिए अलग-अलग दृष्टिकोण मौजूद हैं, और यह कि इस क्षेत्र में विभिन्न मतों और दृष्टिकोणों के बीच मतभेद भी हैं। इस प्रकार, यह पाठ ज्योतिष विज्ञान में सूर्य और चंद्रमा की स्थिति को समझने और गणना करने के विभिन्न तरीकों का सार प्रस्तुत करता है।
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