मतिराम ग्रन्थावली | Matiram Granthawali

By: डॉ कृष्णबिहारी मिश्र - Dr. Krishnbihari Mishra
मतिराम ग्रन्थावली | Matiram Granthawali by


दो शब्द :

पं० कृष्णविहारी मिश्र की कृति 'मतिराम-ग्रंथावली' हिंदी आलोचना साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस ग्रंथ में मिश्रजी ने मतिराम की लुप्त रचनाओं को प्रकाश में लाया और अपनी समालोचना के द्वारा हिंदी साहित्य में नए आदर्श स्थापित किए। उन्होंने आलोचना को केवल नियमों के अनुसार नहीं, बल्कि कवि की अंतरात्मा में प्रवेश कर उसके भावों को समझने का प्रयास किया। मिश्रजी ने रसास्वादन के माध्यम से कवि की रचनाओं का मूल्यांकन किया और विभिन्न समकालीन कवियों की तुलना कर तुलनात्मक आलोचना को भी शामिल किया। उनकी अन्य प्रसिद्ध पुस्तक 'देव और बिहारी' में भी उन्होंने निष्पक्षता के साथ बिहारी और देव की कृतियों का मूल्यांकन किया। मिश्रजी ने शृंगार-रस को 'रसों का राजा' मानते हुए प्रेम और भक्ति की कविता के महत्व को उजागर किया। उन्होंने यह भी बताया कि प्रेम-भक्ति की कविता ने समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मिश्रजी का मानना था कि काव्य की रमणीयता और आनंद का अनुभव केवल सहृदय रसिक जन ही कर सकते हैं। उन्होंने कविता को नीरस और अलंकार-प्रधान नहीं मानते हुए उसे रसात्मक काव्य के रूप में परिभाषित किया। इस प्रकार, उनकी कृतियाँ न केवल साहित्य की आलोचना में नवीनता लाती हैं, बल्कि वे प्रेम और भक्ति के महत्व को भी रेखांकित करती हैं।


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