उच्चतर समाजशास्त्रीय सिद्धांत | Advanced Sociological Theories

- श्रेणी: दार्शनिक, तत्त्वज्ञान और नीति | Philosophy सामाजिक कौशल/social skills
- लेखक: शंभूलाल - Shambhulal
- पृष्ठ : 417
- साइज: 9 MB
- वर्ष: 2006
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दो शब्द :
इस पाठ में समाजशास्त्रीय सिद्धांतों की व्याख्या और उनके विकास पर चर्चा की गई है। लेखक ने समाजशास्त्र में मौलिकता का दावा न करते हुए विभिन्न स्रोतों से जानकारी संकलित की है। उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि समाजशास्त्र की किताबों में ऐसी भाषा का उपयोग किया गया है जो अध्यापकों और विद्यार्थियों के लिए समझने में सरल हो। पुस्तक का उद्देश्य समाजशास्त्रीय सिद्धांतों को बोधगम्य बनाना है, ताकि ये अधिक से अधिक लोगों तक पहुँच सकें। लेखक ने यह भी बताया है कि स्वतंत्रता के बाद हिंदी में समाजशास्त्र पर किताबों की कमी है, विशेषकर सिद्धांतों के क्षेत्र में। उन्होंने यह महसूस किया कि वर्तमान पाठ्यक्रम दकियानूसी दृष्टिकोण से भरे हुए हैं और नए सिद्धांतों को शामिल नहीं किया गया है, जिससे भारतीय समाज के संदर्भ में अध्ययन में कमी आ रही है। पुस्तक में विभिन्न अध्यायों के माध्यम से समाजशास्त्र के प्रमुख सिद्धांतों का विश्लेषण किया गया है, जिसमें सामाजिक क्रिया, प्रकार्यवाद, संघर्ष सिद्धांत, विवेचनात्मक सिद्धांत, और विनिमय सिद्धांत शामिल हैं। इसके अलावा, भारतीय समाज में सिद्धांतों के विकास की प्रक्रिया और चुनौतियों पर भी चर्चा की गई है, जिसमें जाति व्यवस्था, उपनिवेशवाद, और सामाजिक संरचना की भूमिका का उल्लेख किया गया है। कुल मिलाकर, यह पाठ समाजशास्त्रीय सिद्धांतों की गहराई और उनकी सामाजिक प्रासंगिकता को स्पष्ट करने का प्रयास करता है, जिससे पाठकों को सामाजिक विचारधारा के विकास की यात्रा को समझने में मदद मिल सके।
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