रस -मीमांसा | Ras- Mimansa

- श्रेणी: काव्य / Poetry साहित्य / Literature
- लेखक: रामचंद्र शुक्ल - Ramchandra Shukla विश्वनाथ प्रसाद मिश्र - Vishwanath Prasad Mishra
- पृष्ठ : 516
- साइज: 37 MB
- वर्ष: 1957
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दो शब्द :
इस पाठ में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य-मीमांसा पर चर्चा की गई है। शुक्लजी ने भारतीय काव्यशास्त्र को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया और अपनी स्वतंत्र विचारधारा के माध्यम से रस-मीमांसा को नई दिशा दी। उन्होंने भारतीय परंपरा का सम्मान करते हुए आधुनिक पश्चिमी विचारों को भी शामिल किया, लेकिन अंधानुकरण से बचते रहे। पाठ में काव्य के उद्देश्य और उसके अनुभव की प्रक्रिया को समझाया गया है। यह बताया गया है कि काव्य कैसे मनुष्य के भावों को जगत के विविध रूपों और व्यापारों के साथ जोड़ता है। जब कोई व्यक्ति अपने स्वार्थ से परे जाकर शुद्ध अनुभूति की अवस्था में पहुँचता है, तब वह काव्य के माध्यम से रस की अनुभूति करता है। काव्य का उद्देश्य मनुष्य को उसकी भावनाओं और जगत के साथ सामंजस्य स्थापित करने में मदद करना है। यह उस समय होता है जब व्यक्ति बाहरी प्रकृति और अपनी अंतःप्रकृति के बीच के संबंधों को समझता है। पाठ में यह भी उल्लेख किया गया है कि काव्य में प्राकृतिक दृश्य केवल उद्दीपन के रूप में होते हैं, जबकि नायक-नायिका की भावनाओं का वर्णन मुख्य होता है। इस प्रकार, पाठ शुक्ल जी के काव्य-दृष्टिकोण, उनकी विचारधारा और काव्य के महत्व को स्पष्ट करता है, जिसमें वह मानवीय अनुभवों के लिए एक गहरी समझ और संवेदनशीलता का आग्रह करते हैं।
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