नाथ योग [परिचयात्मक अध्ययन] | Nath Yog [Parichayaatmak adhyayan]
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- श्रेणी: योग / Yoga
- लेखक: अक्षयकुमार वनर्जी - Akshay Kumar Banerjee रामचन्द्र तिवारी - Ramchandra Tiwari
- पृष्ठ : 138
- साइज: 4 MB
- वर्ष: 1968
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दो शब्द :
यह पाठ "नाथ-योग" पर आधारित है, जिसमें योग साधना के इतिहास, उसके प्रभाव और महत्व, और गुरु गोरखनाथ के योगी सम्प्रदाय की चर्चा की गई है। योग की प्राचीनता और इसकी भारतीय संस्कृति में भूमिका को रेखांकित करते हुए बताया गया है कि योग मानव के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास का एक माध्यम है। योग साधना के द्वारा व्यक्ति अपने भीतर की शक्तियों को जागृत कर सकता है और सत्य की अनुभूति कर सकता है। लेखक ने यह भी उल्लेख किया है कि योग साधना केवल एक धार्मिक सम्प्रदाय तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विभिन्न भारतीय धार्मिक परंपराओं में स्वीकृत है। गोरखनाथ, जो एक महत्वपूर्ण योगी और गुरु थे, ने इस साधना को एक व्यवस्थित रूप दिया और उनके अनुयायियों ने इसे आगे बढ़ाया। गोरखनाथ की शिक्षाएँ व उनके द्वारा स्थापित सम्प्रदाय का प्रभाव भारतीय समाज में गहरा है, और उनके चमत्कारिक कार्यों के कारण उन्हें अलग-अलग स्थानों पर पूजनीय माना जाता है। पुस्तक में योग की विभिन्न पहलुओं को जैसे हठयोग, आसन, प्राणायाम, और ध्यान की विधियों का विस्तृत वर्णन किया गया है। यह पुस्तक न केवल साधकों के लिए, बल्कि भारतीय संस्कृति और साधना के प्रेमियों के लिए भी महत्वपूर्ण है। लेखक और अनुवादक ने इसे सरल भाषा में प्रस्तुत किया है ताकि अधिक से अधिक लोग इसका लाभ उठा सकें। इस प्रकार, "नाथ-योग" एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो योग साधना, गुरु गोरखनाथ के योगदान और भारतीय संस्कृति में इसके स्थान को स्पष्ट करता है।
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