भाषा और समाज | Bhasha aur Samaj

- श्रेणी: भाषा / Language
- लेखक: सूर्यकांत त्रिपाठी निराला - Suryakant Tripathi Nirala
- पृष्ठ : 676
- साइज: 11 MB
- वर्ष: 1961
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दो शब्द :
इस पाठ में भाषा विज्ञान और उसकी सामाजिक प्रक्रियाओं का विश्लेषण किया गया है। इसमें यह बताया गया है कि भाषाएं केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि समाज के विकास, संस्कृति और पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं। यह चर्चा की गई है कि विभिन्न भाषाएं, जैसे कि हिंदी, संस्कृत, और अन्य भारतीय भाषाएं, विभिन्न सामाजिक और ऐतिहासिक संदर्भों में कैसे विकसित हुई हैं। पुस्तक में भाषा की उत्पत्ति, उसकी ध्वनियों, और सामाजिक संपर्क के माध्यम से उसके विकास पर विचार किया गया है। यह स्पष्ट किया गया है कि भाषाएं एक-दूसरे से संबंधित हैं और इनके बीच के संबंध एक आदिभाषा से नहीं, बल्कि आपसी संपर्क से उत्पन्न होते हैं। इसके अलावा, आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास संस्कृत के समानांतर बोलने वाली भाषाओं से हुआ है, न कि वह संस्कृत का विकृत रूप हैं। पाठ में यह भी बताया गया है कि भाषा और समाज के बीच गहरा संबंध है। जब समाज में परिवर्तन होते हैं, तो भाषा भी उन परिवर्तनों के साथ विकसित होती है। विभिन्न जातियों और भाषाओं के निर्माण की प्रक्रिया को समझना आवश्यक है ताकि हम भाषा की विविधता और उसके सामाजिक प्रभाव को समझ सकें। इस प्रकार, यह पाठ भाषा विज्ञान के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जिसमें सामाजिक और भाषाई कारकों के बीच के संबंधों की विस्तृत चर्चा की गई है। पाठक को यह सलाह दी जाती है कि वे भाषा विज्ञान का अध्ययन करते समय सामाजिक संदर्भ को ध्यान में रखें।
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