प्रतिभा कलानिधि | Album of Hindu Iconography

- श्रेणी: Art and Architecture | कला और वास्तुकला भारत / India
- लेखक: प्रभाशंकर - o somapura
- पृष्ठ : 138
- साइज: 7 MB
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दो शब्द :
इस पाठ में भारतीय स्थापत्य-कला और मूर्तियों के निर्माण की परंपरा का विस्तृत वर्णन किया गया है। भारतीय स्थापत्य-कला का विकास धार्मिक भावनाओं के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। मूर्ति पूजा की प्रथा का उल्लेख वेदों में मिलता है, और इसे ध्यान और साधना के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण माना गया। भक्तिमार्ग में मूर्ति को पूजनीय तत्व के रूप में स्वीकार किया गया। प्राचीन समय में निराकार लिंगोपासना प्रचलित थी, और विभिन्न देवताओं की पूजा की जाती थी, जिनमें ब्रह्मा, विष्णु, और शिव शामिल थे। भारत में स्थापत्य-कला की दो प्रमुख शैलियाँ हैं: नागर शैली उत्तरी और द्रविड़ शैली दक्षिणी भारत में। धार्मिक ग्रंथों का निर्माण और उनके अध्ययन का महत्व रहा है, लेकिन समय के साथ शिल्पियों ने मौलिक ग्रंथों का अध्ययन छोड़कर पारिवारिक ज्ञान पर निर्भर रहना शुरू कर दिया। पाठ में उल्लेख किया गया है कि 15वीं सदी में राणा कुंभा ने प्रसिद्ध शिल्पियों को आमंत्रित किया और उन्होंने प्राचीन ग्रंथों का संपादन किया, जिससे वास्तु-शास्त्र को पुनर्जीवित किया गया। आधुनिक काल में भी कुछ ग्रंथों का प्रकाशन हुआ है, जो स्थापत्य-कला के मूल सिद्धांतों को प्रस्तुत करते हैं। लेखक ने अपने पूर्वजों के कार्यों और अनुभवों का उल्लेख किया है, जो विभिन्न मंदिरों के निर्माण में शामिल रहे हैं। उन्होंने कई महत्वपूर्ण रचनाएँ की हैं और इस ज्ञान को आगे बढ़ाने का प्रयास किया है। पाठ का मुख्य उद्देश्य प्राचीन भारतीय स्थापत्य-कला की जानकारी को संरक्षित करना और नए सिरे से इसे जीवित करना है। अंत में, लेखक ने अपने सहयोगियों और परिजनों का आभार व्यक्त किया है, जिन्होंने इस कार्य में उनका साथ दिया।
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