अंतर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र | International Economics

By: एच-एस अग्रवाल - H S Agrawal
अंतर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र | International  Economics by


दो शब्द :

इस पाठ में अंतरराष्ट्रीय व्यापार और आंतरिक व्यापार के बीच के भेदों और सिद्धांतों पर चर्चा की गई है। प्रमुख विचार यह है कि कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए एक विशेष सिद्धांत की आवश्यकता है, जबकि अन्य इसे आंतरिक व्यापार का एक विस्तारित रूप मानते हैं। रो. ओहलिन जैसे अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार में श्रम और पूंजी की गतिशीलता की कमी होती है, जो इसे आंतरिक व्यापार से भिन्न बनाती है। उनका दृष्टिकोण यह है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए विशेष सिद्धांत की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय व्यापार के बीच कई समानताएँ हैं। ओहलिन का यह भी कहना है कि अगर हम सामान्य मूल्य सिद्धांत को अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर लागू करें, तो यह सिद्धांत लागू हो सकता है। उनका मानना है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार में स्थान तत्व महत्वपूर्ण है और इसे समझने के लिए विशेष ध्यान देना चाहिए। इसके अलावा, पाठ में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के विपक्ष में दिए गए तर्कों की चर्चा भी की गई है, जैसे कि प्राकृतिक संसाधनों का सीमित होना, राष्ट्रीय सुरक्षा, घरेलू उद्योगों को होने वाली हानि, और आर्थिक असंतुलन। अंततः, पाठ यह सुझाव देता है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार का अध्ययन अन्य शाखाओं की तरह विशेष रूप से किया जाना चाहिए, और यह भी कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार के सिद्धांतों का विकास और समझ आंतरिक व्यापार के सिद्धांतों से प्रभावित हो सकता है।


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