लघुसिद्धान्त कौमुदी | Laghu Siddhant Kaumudi

- श्रेणी: Grammar/व्याकरण संस्कृत /sanskrit
- लेखक: तुलसीदास परौहा - Dr.Tulsidas Parouha
- पृष्ठ : 179
- साइज: 28 MB
- वर्ष: 2012
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दो शब्द :
इस पाठ में डॉ. तुलसीदास परौहा द्वारा लिखित "लघुसिद्धान्तकौमुदी" की व्याख्या का उद्देश्य और महत्व बताया गया है। लेखक ने संस्कृत व्याकरण को वेद के शरीर का मुख मानते हुए इसकी महत्ता को स्वीकार किया है। उन्होंने उल्लेख किया है कि व्याकरण का ज्ञान बिना शास्त्र ज्ञान संभव नहीं है। लघुसिद्धान्त कौमुदी, वरदराजाचार्य द्वारा रचित, पाणिनीय अष्टाध्यायी के 4000 सूत्रों में से 1276 सूत्रों का संकलन है, जो संस्कृत व्याकरण का गहन अध्ययन कराने में सहायक है। लेखक ने व्याकरण की कठिनाइयों को दूर करने की इच्छा से सरल और सहज बोधगम्य शैली में व्याख्या लिखने का प्रयास किया है। उन्होंने संज्ञा, संधि, और कारक प्रकरण पर विशेष ध्यान केंद्रित किया है। इस व्याख्या में कठिन स्थलों को सरल रूप में प्रस्तुत किया गया है, और सूत्रों का स्पष्ट अर्थ प्रदान किया गया है। लेखक ने यह भी बताया है कि उनका यह कार्य गुरुजन की कृपा का परिणाम है और उन्होंने सभी संबंधित व्यक्तियों का आभार व्यक्त किया है। उन्होंने व्याकरण के अध्ययन के दौरान विद्यार्थियों की दृष्टि में व्याकरण को सरल बनाने का प्रयास किया है ताकि छात्र इसे एक कठिन विषय न समझें। इस प्रकार, यह पाठ लघुसिद्धान्त कौमुदी की व्याख्या के महत्व, उसके अध्ययन की सरलता और व्याकरण को समझने में सहायक तत्त्वों पर प्रकाश डालता है।
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