राजस्थानी सबद कोस (प्रथम खंड ) | Rajasthani Sabad Kos (part1)

By: सीताराम लालस - Seetaram Lalas
राजस्थानी सबद कोस (प्रथम  खंड ) | Rajasthani Sabad Kos (part1) by


दो शब्द :

इस पाठ में राजस्थानी भाषा और उसकी विभिन्न शाखाओं का विवेचन किया गया है। राजस्थानी भाषा का इतिहास, व्युत्पत्ति और विकास पर चर्चा की गई है। यह बताया गया है कि गुजराती और राजस्थानी को सोलहवीं शताब्दी तक एक ही भाषा माना जाता था, लेकिन समय के साथ इन दोनों भाषाओं में भिन्नताएँ उत्पन्न हुईं। नरसिंह मेहता जैसे कवियों के योगदान के माध्यम से गुजराती भाषा का विकास हुआ, जबकि राजस्थानी भाषा की अपनी विशेषताएँ हैं। राजस्थानी भाषा की पांच प्रमुख शाखाएँ हैं, जैसे पश्चिमी और पूर्वी राजस्थानी, जिनमें विभिन्न ध्वनियाँ और शब्द उपयोग की प्रवृत्तियाँ देखी जाती हैं। पाठ में विभिन्न क्षेत्रीय बोलियों की विशेषताओं का भी उल्लेख किया गया है, जैसे बागड़ी, गोड़वाड़ी और ढूंढाड़ी। इसमें यह भी बताया गया है कि राजस्थानी भाषा में शब्दों के रूप-भेद और ध्वनि-परिवर्तन के कई कारण होते हैं, जो भाषा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा, पाठ में यह भी बताया गया है कि राजस्थानी में कई ऐसे शब्द हैं जो संस्कृत से संबंधित हैं, लेकिन उनका प्रयोग अन्य भाषाओं में नहीं होता। अंत में, भाषा विज्ञान की दृष्टि से राजस्थानी के विभिन्न पहलुओं और उनके प्रभावों पर भी प्रकाश डाला गया है। कुल मिलाकर, यह पाठ राजस्थानी भाषा की समृद्धि, विविधता और उसके विकास के विभिन्न पहलुओं का विस्तृत विवेचन है।


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